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हे मनुष्य आज तुझ को,आतंक है ललकारता।
तेरे अपनों के बीच से आके,
तेरे अपनों का खून बहा के,
आज तुम पर दहाड़ता।
हे मनुष्य आज …….
तेरी नीदों को उड़ाने,
अमन, चैन में आग लगाने,
तेरी मानवता का घात लगा के,
तुझे है ललकारता।
हे मनुष्य आज …….
एक को नही, हर मनुष्य को,
एक देश नही, सम्पूर्ण विश्व को,
शत्रु रूप में धिक्कारता ।
हे मनुष्य आज …….
दैत्य वंशज ये आतंकी,
घात लगाये छुपे हुए है ।
सावधान हे मनुष्य
तेरे ही बीच में रुके हुए
मौके को है तलाशता।
हे मनुष्य आज …….
बेगुनाहों को सताता,
पीछे से दाव लगाता
दूर से फुफकारता।
हे मनुष्य आज …….
सहमा हुआ है बाल भी
छवि देख के आतंक की
जो उन के तन मन को झकझोरता।
हे मनुष्य आज …….
सपनो को है तोड़ता
पतन से रूख जोड़ता
हर देश की दहलीज पर
आग सा धुधकारता
हे मनुष्य आज …….
तुझे जंग लड़ना होगा
समूल आतंक नष्ट करना होगा
सौहार्द प्रेम बढ़ाना होगा
हे मनुष्य आब तुझ को आतंक मिटाना होगा।।
–माताप्रसाद वर्मा
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