Dil Se
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तेरे होंठों की वो हंसी
जब भी याद आती है।
आँखों से मेरे नीर की
इक धार छूट जाती है।
तेरे होंठों से निकली वो प्यारी
आवाज गुनगुनाती है।
कानो में मेरे आज भी
वो ऐसे कौंध जाती है।
उदासी का वो पारावार
मुझे घेर लेता है ।
जीने की न कोई वजह
मुझ में छोड़ जाती है ।
ग़मगीन जिंदगी मेरी
गमगीन जमाना हुआ।
तुझ से बिछड़े हुए
हमराही जमाना हुआ।
तीर जो दिल में बिधा
जख्म न भर रहा।
दर्द वो आज भी
ह्ऱा ही ह्ऱा रहा।
जीने की न वजह बस
तुझ से मिलने का आसरा रहा।
–माताप्रसाद वर्मा
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