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इस होली पर मै दिल्ली में अकेला हूँ मेरे सारे दोस्त घर जा चुके है ।मुझे अच्छा नही लग रहा है।बिलकुल भी नही , वैसे घर न जाने का निर्णय मेरा ही था ।सोचा यहाँ रह कर पढ़ाई करूँगा । पर पढ़ाई भी तो नही हो रही है ।मुझे घर चले जाना चाहिए था ।
रात स्वप्नों में चाँद तन्हा रहा ।
उस साम महफ़िल में जाम अपना रहा
याद रहा वो पल जब हर कोई अपना रहा
बीते दिनों की याद आज गम में भी लाई बहार
अधरों से मुस्कान निकली नैनों से नम करती नीर
भीगे कपोल फिर भी
वो दिन अपना रहा ………..२
अतीत से लौटा वापस
गम को रहा इंतजार
पाके मुझे अपने में
ले जाने लगा वो कष्टकार
वही अश्रु आँखों से आज
क्षुब्ध क़र निकल रहा
दिन वही रहा ,दिनकर वही रहा
रजनी वही चांदनी वही रही
खो गया तो वो बचपन
जो खुशियों से भरा रहा
धरती वही रही, आसमां वही रहा
गया तो वो बचपन ,जो खुशियों से भरा रहा |
!!!!!आप सभी को होली की ढ़ेर सारी हार्दिक शुभकामनायें !!!!!
–माता प्रसाद वर्मा
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