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प्रेम के अनुराग में

Dil Se
Dil Se
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    प्रेम के अनुराग में,
    प्रेम के प्रलाप में
    मन द्रवित होकर बोल पड़ा।

प्रेम में सुख निहित है
प्रेम में ही दुख निहित है
प्रेम मानवता की रीढ़ है ।


    प्रेम मानवता की सीख है
    स्वर्ग सा आनंद है
    स्वर्ग की अनुभूति है।

प्रेम में ही शान्ति,समृधि की बीज है
प्रेमी होना जिंदगी की
इक महत्तम विजय है।


hi


    प्रेम से प्रेम मिलता
    ये अहम् अहसास है
    प्रेम करता हर मनुष्य
    जो छटा निराली है।

सावन की रिमझिम बारिश हो
या कलरव प्रातः कालीन हो
इक अहसास उठता है मन में
जो प्रेम की ही डाली है।

    सहसा मन भीग जाता
    प्रफुल्लित होकर प्रेम से
    इक भाव मन में कौध जाता
    उस प्रदृश्य के प्रहार से ।


क्षण भी कितना प्रबल अंक
प्रेम के प्रादुर्भाव में
प्रेम ही बस प्रेम है मीठा
इस संसार में।


    –माताप्रसाद वर्मा

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